सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
ले तेरी भेंट चडाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
सुवा चोली तेरी अंग विराजे ।
केसर तिलक लगाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
नंगे पग मां अकबर आया ।
सोने का छत्र चडाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया ।
निचे शहर बसाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये ।
कालियुग राज सवाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
धूप दीप नैवैध्य आर्ती ।
मोहन भोग लगाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥
ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया ।
मनवंचित फल पाया ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥
अगर आपको यह लेख पसंद आया, तो कृपया शेयर या कॉमेंट जरूर करें।
(कुल अवलोकन 891 , 1 आज के अवलोकन)