साल में चार बार नवरात्र आते हैं। मार्च से अप्रैल के बीच में पहले नवरात्र आते है जिन्हें चैत्र नवरात्र या वासंतीय नवरात्र कहते है। दूसरे नवरात्र आषाढ़ या वर्षाकालीन नवरात्र होते है। सितंबर और अक्तूबर के बीच में तीसरे नवरात्र आते है जिन्हें आश्विन या शारदीय नवरात्र कहते है। अंतिम और चौथा नवरात्र माघ नवरात्र या शिशिर नवरात्र होता है। आषाढ़ और शिशिर नवरात्रों को गुप्त नवरात्र कहते है। सभी नौ दिन माँ आदिशक्ति के भिन्न-भिन्न रूपों को समर्पित हैं।
प्रतिपदा: माँ शैलपुत्री 22 सितम्बर 2025 सोमवार
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
इस रूप में आदि शक्ति ने शैलराज हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल प्रतिपदा
सवारी: वृष, सवारी वृष होने के कारण इनको वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण किए हुए हैं।
मुद्रा: माँ का यह रूप सुखद मुस्कान और आनंदित दिखाई पड़ता है।
ग्रह: चंद्रमा – माँ शैलपुत्री सभी भाग्य की प्रदाता है, चंद्रमा के पड़ने वाले किसी भी बुरे प्रभाव को नियंत्रित करती हैं।
शुभ रंग: नारंगी
द्वितीय: माँ ब्रह्मचारिणी 23 सितम्बर2025
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल द्वितीया
अन्य नाम: देवी अपर्णा
सवारी: नंगे पैर चलते हुए।
अत्र-शस्त्र: दो हाथ- माँ दाहिने हाथ में जप माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए हैं।
ग्रह: मंगल – सभी भाग्य का प्रदाता मंगल ग्रह।
शुभ रंग:सफेद
तृतीया: माँ चंद्रघंटा 24 सितम्बर 2025
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
यह देवी पार्वती का विवाहित रूप है।देवी महागौरी ने भगवान शिव से शादी करने के बाद अपने माथे को अर्ध चंद्र से सजाना प्रारंभ कर दिया और इसी कारण देवी पार्वती को देवी चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। वह अपने माथे पर अर्ध-गोलाकार चंद्रमा धारण किए हुए हैं। उनके माथे पर यह अर्ध चाँद घंटा के समान प्रतीत होता है, अतः माता के इस रूप को माता चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल तृतीया
सवारी: बाघिन
अत्र-शस्त्र: दस हाथ – चार दाहिने हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल तथा वरण मुद्रा में पाँचवां दाहिना हाथ। चार बाएं हाथों में कमल का फूल, तीर, धनुष और जप माला तथा पांचवें बाएं हाथ अभय मुद्रा में।
मुद्रा: शांतिपूर्ण और अपने भक्तों के कल्याण हेतु।
ग्रह: शुक्र
शुभ रंग: लाल
चतुर्थी: माँ कूष्माण्डा 26 सितम्बर
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
देवी कूष्माण्डा, सूर्य के अंदर रहने की शक्ति और क्षमता रखती हैं। इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। मां की आठ भुजाएं हैं इसलिए माँ के इस रूप को अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल चतुर्थी
अन्य नाम: अष्टभुजा देवी
सवारी: शेरनी
अत्र-शस्त्र: आठ हाथ – उसके दाहिने हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल है और बाएं हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र है।
मुद्रा: कम मुस्कुराहट के साथ।
ग्रह: सूर्य – सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदाता।
शुभ रंग: रॉयल ब्लू
पञ्चमी: माँ स्कन्दमाता 27 सितम्बर2025
या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
स्कंदमाता मां नव दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। स्कंद शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं, और इसी वजह से स्कंदमाता को देवी पद्मासना के नाम से भी जाना जाता है। देवी स्कंदमाता का रंग शुभ्र है, जो उनके श्वेत रंग का वर्णन करता है। जो भक्त देवी के इस रूप की पूजा करते हैं, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा करने का लाभ भी मिलता है।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल पञ्चमी
अन्य नाम: देवी पद्मासना
सवारी: उग्र शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ अपने ऊपरी दो हाथों में कमल के फूल रखती हैं है। वह अपने एक दाहिने हाथ में बाल मुरुगन को और अभय मुद्रा में है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई के रूप में भी जाना जाता है।
मुद्रा: मातृत्व रूप
ग्रह: बुद्ध
शुभ रंग: पीला
षष्ठी: माँ कात्यायनी 28 सितम्बर2025
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा और अर्चना की जाती है। राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए माँ पार्वती ने देवी कात्यायनी का रूप धारण किया। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लिया, इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनकी चार भुजाएं हैं इनकी चार भुजाएं हैं
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल षष्ठी
सवारी: शोभायमान शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण किए हुए है और अपने दाहिने हाथ को अभय और वरद मुद्रा में रखती है।
मुद्रा: सबसे हिंसक रूप
ग्रह: गुर
शुभ रंग: हरा
सप्तमी: माँ कालरात्रि 29 अक्टूबर2022
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
जब देवी पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों का वध लिए तब माता ने अपनी बाहरी सुनहरी त्वचा को हटा कर देवी कालरात्रि का रूप धारण किया। कालरात्रि देवी पार्वती का उग्र और अति-उग्र रूप है। देवी कालरात्रि का रंग गहरा काला है। अपने क्रूर रूप में शुभ या मंगलकारी शक्ति के कारण देवी कालरात्रि को देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल सप्तमी
अन्य नाम: देवी शुभंकरी
सवारी: गधा
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं, और बाएं हाथों में तलवार और घातक लोहे का हुक धारण किए हैं।
मुद्रा: देवी पार्वती का सबसे क्रूर रूप
ग्रह: शनि
शुभ रंग: ग्रे
अष्टमी: माँ महागौरी 3 सितम्बर 2025
या देवी सर्वभूतेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोलह साल की उम्र में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर थीं। अपने अत्यधिक गौर रंग के कारण देवी महागौरी की तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। अपने इन गौर आभा के कारण उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। माँ महागौरी केवल सफेद वस्त्र धारण करतीं है उसी के कारण उन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता है।
अन्य नाम: श्वेताम्बरधरा
सवारी: वृष
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – माँ दाहिने हाथ में त्रिशूल और अभय मुद्रा में रखती हैं। वह एक बाएं हाथ में डमरू और वरदा मुद्रा में रखती हैं।
ग्रह: राहू
मंदिर: हरिद्वार के कनखल में माँ महागौरी को समर्पित मंदिर है।
शुभ रंग: बैंगनी /जामुनी
नवमी: माँ सिद्धिदात्री 1 अक्टूबर 2025
शक्ति की सर्वोच्च देवी माँ आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बाएं आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां तक कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से अपनी सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। माँ सिद्धिदात्री केवल मनुष्यों द्वारा ही नहीं बल्कि देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों द्वारा भी पूजी जाती हैं। जब माँ सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को र्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माँ सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान हैं।
तिथि: चैत्र /अश्विन शुक्ल नवमी
सवारी: शेर
अत्र-शस्त्र: चार हाथ – दाहिने हाथ में गदा तथा चक्र, बाएं हाथ में कमल का फूल शंख व शंख शोभायमान है।
ग्रह: केतु
शुभ रंग: मोरपंखी हरा
विजयादशमी 2 अक्टूबर 2025
2) अपने प्रतिकूल ग्रह वाले दिन, उपवास!
3) मंदिर में माता के अथवा मंदिर के बाहर ध्वज के दर्शन!

