संकटा माता की आरती (Sankata Mata Ki Aarti) – संकटों को हरने वाली संकटा माता अपने भक्तों के संकट को क्षण भर में दूर करतीं हैं। संकटा माता का व्रत शुक्रवार को रखा जाता है। माता संकटा का व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से शुरू कर सकते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने सौभाग्य की वृद्धि के लिये, कुँवारी कन्याएं अपने मनवान्छित वर को पाने के लिये, छात्र परीक्षा में सफलता के लिये और अन्य व्यक्ति अपने मनोकामनाओं के पूरी होने के लिये इस व्रत को रख सकते हैं। इस व्रत के रखने से मनुष्य को सभी प्रकार के रोगों एवं समस्त दुःखों से मुक्ति मिल जाती है। संकटा माता की जय !
संकटा माता की आरती
जय जय संकटा भवानी, करहूं आरती तेरी ।
शरण पड़ी हूँ तेरी माता, अरज सुनहूं अब मेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
नहिं कोउ तुम समान जग दाता, सुर-नर-मुनि सब टेरी ।
कष्ट निवारण करहु हमारा, लावहु तनिक न देरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
काम-क्रोध अरु लोभन के वश, पापहि किया घनेरी ।
सो अपराधन उर में आनहु, छमहु भूल बहु मेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
हरहु सकल सन्ताप हृदय का, ममता मोह निबेरी ।
सिंहासन पर आज बिराजें, चंवर ढ़ुरै सिर छत्र-छतेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
खप्पर, खड्ग हाथ में धारे, वह शोभा नहिं कहत बनेरी ॥
ब्रह्मादिक सुर पार न पाये, हारि थके हिय हेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
असुरन्ह का वध किन्हा, प्रकटेउ अमत दिलेरी ।
संतन को सुख दियो सदा ही, टेर सुनत नहिं कियो अबेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
गावत गुण-गुण निज हो तेरी, बजत दुंदुभी भेरी ।
अस निज जानि शरण में आयऊं, टेहि कर फल नहीं कहत बनेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
जय जय संकटा भवानी, करहूं आरती तेरी ।
भव बंधन में सो नहिं आवै, निशदिन ध्यान धरीरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥
जय जय संकटा भवानी, करहूं आरती तेरी ।
शरण पड़ी हूँ तेरी माता, अरज सुनहूं अब मेरी ॥
॥ जय जय संकटा भवानी..॥