क्षमा प्रार्थना
दुर्गा सप्तसती पाठ समाप्त होने के उपरान्त अंत में क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए और देवी से पाठ के दौरान जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
हे परमेश्वरि ! मेरे द्वारा रात -दिन सहस्त्रों अपराध होते रहे है। अतः आप मुझे अपना सेवक समझकर कृपा पूर्वक मेरे उन अपराधों को क्षमा करो। न तो मैं आवाहन करना ही जानता हूँ ,न तो विसर्जन करना ही जानता हूँ और न पूजा ही करना जनता हूँ। हे परमेश्वरि ! मुझे क्षमा करो। हे सुरेश्वरि ! मैंने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजन किया है, वह सब आपकी दया से पूर्ण हो। सैकड़ों अपराध करके भी भक्त आपकी शरण में आकर केवल जगदम्ब कहकर ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं, जिसे ब्रह्मादि देवगण भी पाने में असमर्थ होते हैं। हे जगदम्बिके ! मैं अपराधी हूँ ,किन्तु आपकी शरण में आया हूँ ,अतः इस समय मैं दया का पात्र हूँ। तुम जैसा चाहो ,वैसा करो। अज्ञानवश या बुद्धिभ्रम होने के कारण भूल से जो कुछ भी मैंने कम या अधिक कर दिया हो, हे देवि ! हे परमेश्वरि !सब अपराध क्षमा करो और प्रसन्न हो। हे जगन्माता ! हे कामेश्वरी ! सच्चिदानन्दस्वरूपिणी परमेश्वरि ! आप प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझ पर सदैव प्रसन्न रहो। आप गुप्त से भी गुप्त वस्तु की रक्षा करने वाली हो, आप मेरे किये हुए इस जप को ग्रहण करके मेरे सभी अपराधों को क्षमा करो। हे देवि ! हे महेश्वरी !आपकी कृपा से मुझे सिद्धि की प्राप्ति हो।