सोम प्रदोष व्रत कथा, पूजा विधि, महत्व (Som Pradosh Vrat 2024 ) – हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हर महीने में दो बार त्रयोदशी तिथि आती है। एक बार शुक्ल पक्ष और एक बार कृष्ण पक्ष में आती है। अतः हर माह दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं, जबकि पूरे साल में कुल 24 प्रदोष व्रत आते हैं। प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है।
प्रदोष काल : प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होता है। इसी कल में शिव-पार्वती जी की पूजा की जाती है।
साल 2024 में सोम प्रदोष व्रत की तिथियां कब है?
प्रदोष व्रत तिथि मई में
शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत
सोमवार, 20 मई 2024
पूजा विधि :-
- इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करे उसके बाद पूजा स्थल को साफ करें।
- भगवान शिव की स्थापित मूर्ति या शिवलिंग को स्नान कराएं। पार्वतीजी की मूर्ति को भी स्नान कराएं या जल छिड़कें।
- अब भगवान को चंदन, पुष्प, अक्षत, धूप, बेलपत्र, दक्षिणा और नैवेद्य अर्पित करें। मां पार्वती को लाल चुनरी और सुहाग का सामान चढ़ाएं।
- अब व्रत करने का संकल्प लें और फिर अब आरती करें। आरती कर नैवेद्य या प्रसाद को लोगों में बांट दें।
- शाम को प्रदोष काल में सोम प्रदोष व्रत कथा पढ़े। भगवान जी को भोग लगाए फिर उस भोग को लोगो में बाटे और स्वंयम ग्रहण करे। प्रदोष काल को यथासंभव ओम नमः शिवाय मंत्र का जप करें।
- इस दिन शिवजी का अभिषेक भी कर सकते हैं। अभिषेक करने का तरीका पंडित से जान ले।
सोम प्रदोष व्रत कथा
कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था अतः वह सुबह होते ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल जाती थी। इस तरह वह अपना और अपने पुत्र का पेट पालती थी।एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।
एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए, उन्होंने ठीक वैसा ही किया।
ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शिव की भक्त भी थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे राजकुमार और ब्राह्मणी पुत्र के दिन सुधर गए, वैसे ही शंकर भगवान अपने हर भक्तों पर कृपा बनाए रखते हैं और सबके दिन संवार देते है।
प्रदोष व्रत में क्या खाना चाहिए ?
इस व्रत में पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। प्रदोष व्रत में नमक खाने की मनाही होती है। सुबह स्नान करने के बाद दूध पी सकते हैं। प्रदोष काल में भगवान शिन की पूजा के बाद फलाहार कर सकते हैं। सिर्फ फल का सेवन करना चाहिए।