शरद पूर्णिमा
शारद पूर्णिमा, जिसे पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह त्योहार आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन आता है। इस दिन चंद्रमा सभी सोलह कलाओं के साथ पृथ्वी के नजदीक होता है। भगवान विष्णु के अवतारों मे से केवल भगवान श्री कृष्ण ही हैं जिनमें सोलह कलाओं का समावेश है, जबकि भगवान राम का जन्म केवल बारह कलाओं के साथ हुआ था। इस साल शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को मनायी जाएगी।
इस दिन रात्रि में चंद्रमा की रोशनी को विशेष मान्यता दी जाती है। लोग मानते हैं कि इस रात को चंद्रमा की किरणें अमृत समान होती हैं, जो मनुष्य को स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करती हैं।ऐसा माना जाता है कि, इस दिन भगवान कृष्ण ने दिव्य प्रेम और नृत्य के संगम महा-रास को स्वयं वृंदावन में रचा था। इसलिए बृज क्षेत्र में, शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।परंपरागत रूप से शरद पूर्णिमा के दिन गाय के दूध की खीर या अन्य मीठे व्यंजन सारी रात चंद्रमा की खुली चांदनी के नीचे लटका कर रखते है, जिससे कि उन व्यंजनों मे भी अमरत्व की शक्ति प्रवेश कर जाए। गुजरात राज्य में शरद पूर्णिमा को शरद पूनम भी कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का बहुत महत्व माना जाता है। जो व्यक्ति पूर्णिमासी उपवास का संकल्प लेते हैं, वे शरद पूर्णिमा के दिन से ही उपवास प्रारंभ करते हैं।ऐसा माना जाता है कि, इसी रात के बाद से मौसम बदलने लगता है और सर्दियां शुरू हो जाती हैं। तथा मंदिरों में पूजा-अर्चना एवं खुलने-बंद होने का समय परिवर्तित होजाता है।
शरद पूर्णिमा 2024 खीर रखने का समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को रात 08 बजकर 40 मिनट पर प्रारंभ होगी और 17 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी। शरद पूर्णिमा के दिन चांद निकलने का समय शाम 05 बजकर 05 मिनट है।
शरद पूर्णिमा पर चन्द्रमा की पूजा कैसे करे
चंद्रमा को खीर का भोग लगाए ,जल ,चढ़ाएं और मंत्रों का जाप करें।
ॐ चंद्राय नमः
ॐ सोम सोमाय नमः