भजन
पूजनीय प्रभु ! हमारे भाव उज्जवल कीजिये।
छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिये।।
वेद की बोलें ऋचाएँ सत्य को धारण करें।
हर्ष में हों मग्न सारे शोक-सागर से तरें ।।
पञ्चयज्ञादिक रचाएं विश्व के उपकार को।
धर्म-मर्यादा चलाकर लाभ दें संसार को ।।
नित्य श्रद्धा-भक्ति से यज्ञादि हम करते रहें।
रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें ।।
भावना मिट जाये मन से पाप-अत्याचार की।
कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नर-नारि की ।।
लाभकारी हों हवन हर प्राणधारी के लिए।
वायु जल सर्वत्र हों शुभ गंध को धारण किये ।।
स्वार्थ भाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो।
‘इदन्न मम’ का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो ।।
हाथ जोड़ झुकाय मस्तक वंदना हम कर रहे।
‘नाथ’ करुणारूप, करुणा आपकी सब पर रहे।।
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(कुल अवलोकन 2,212 , 1 आज के अवलोकन)