सकट चौथ की पूजा विधि, व्रत विधि और व्रत कथा – भगवान श्री गणेश संकटों से उबारने वाले देवता हैं और सकट चौथ व्रत की महिमा सर्वविदित है इसे संकष्टी चतुर्थी व्रत भी कहते हैं। इस व्रत को स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती है तथा जब कोई भारी कष्ट में हो, संकटों और परेशानियों से घिरा हो या किसी अनिष्ट की आशंका हो तब भी इस व्रत को किया जाता है।
सकट चौथ का मुहूर्त 2025
- सकट चौथ 2025
14 जून 2025 दिन शनिवार
- चतुर्थी तिथि प्रारम्भ: 14 जून 2025 को दोपहर 3:40 मिनट से
- चतुर्थी तिथि समाप्त: 15 जून 2025 को दोपहर 3:51 मिनट पर
- चंद्रोदय का समय शाम 9:36 मिनट पर
14 जुलाई 2025
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 14 जुलाई 2025 को सुबह 1:02 बजे
- चतुर्थी तिथि समाप्त – 14 जुलाई 2025 को रात 11:49 बजे
- चंद्रोदय का समय – 14 जुलाई 2025 रात 10:07 बजे
12 अगस्त 2025 में
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 12 अगस्त 2025 को सुबह 8:40 बजे
- चतुर्थी तिथि समाप्त – 13 अगस्त 2025 को सुबह 6:35
- चंद्रोदय समय- 12 अगस्त 2025 को रात 8:59 बजे
10 सितंबर 2025
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ – 10 सितंबर 2025 को दोपहर 3:37 बजे
- चतुर्थी तिथि समाप्त – 11 सितंबर 2025 को दोपहर 12:45 बजे
- चंद्रोदय का समय- 10 सितंबर 2025 को रात 9:12 बजे
सकट चौथ वाले दिन स्त्रियाँ सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। और चन्द्रमा के दर्शन के उपरांत ही व्रत खोलती हैं। कई जगहों पर महिलायें कुछ नहीं खाती और कुछ स्थानों पर महिलाएं उपवास तोड़ने के बाद खिचड़ी, मूँगफली और फलाहार लेती हैं। सकट चौथ को शकरकन्द खाने का विशेष महत्व होता है।
पूजन विधि
यह व्रत प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। लेकिन माघ, श्रवण, मार्गशीष और भाद्रपद में इसका विशेष महत्व है। यह व्रत पूरे दिन निर्जला रखा जाता है तथा शाम को श्री गणेश पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही जल ग्रहण किया जाता है। प्रातः काल स्नानादि नित्य कर्मो से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके गणेश जी की प्रतिमा को ईशान कोण में एक चौकी पर रखें। चौकी पर लाल या पीला कपड़ा अवश्य बिछाएं। फिर गणेश जी की प्रतिमा पर गंगा जल छिड़ककर पूजा शुरू करें। इसके बाद दाहिने हाथ में पुष्प, अक्षत, दूर्वा, गंध और जल लेकर संकल्प करें। फिर सामर्थ्यानुसार गणेश जी का पूजन आह्वाहन कर धूप-दीप, गंध, पुष्प, दूर्वा, अक्षत, रोली आदि को ‘ॐ गणेशाय नमः‘ मंत्र का बोलते हुए अर्पित करें। फिर पान-सुपारी और लड्डुओं का भोग लगाएं और घी का दीपक जलाकर भगवान गणेश की आरती करें। सांयकाल चंद्र का पूजन क्र अर्घ्य दें और उसके बाद गणपति को भी अर्घ्य दें और उनसे अपने कष्टों को दूर करने का निवेदन करें। इस दिन कुछ जगहों पर तिल और गुड़ का बकरा बनाकर उसकी बलि दी जाती है।
व्रत कथा
इस दिन भगवान गणेश के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था, इसीलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है।एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को पहरा देने के लिए खड़ा कर दिया और किसी को भी अंदर नहीं आने देने के लिए कहा। तभी भगवान शिव माता पार्वती से मिलने के लिए आए।भगवान शिव जब अंदर की ओर जाने लगे तो गणपति ने उनको जाने से रोक दिया।भगवान शिव इससे क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। मां पार्वती पुत्र का यह हाल देख विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं।
जब मां पार्वती ने भगवान शिव से बहुत अनुरोध किया तो हाथी का सिर लगाकर भगवान गणेश को दूसरा जीवन दिया गया और तब से भगवान गणेश गजानन कहलाए जाने लगे। इस दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ। सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।
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