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श्री विन्ध्येश्वरी माता की आरती

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सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
ले तेरी भेंट चडाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

सुवा चोली तेरी अंग विराजे ।
केसर तिलक लगाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

नंगे पग मां अकबर आया ।
सोने का छत्र चडाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया ।
निचे शहर बसाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये ।
कालियुग राज सवाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

धूप दीप नैवैध्य आर्ती ।
मोहन भोग लगाया ॥ सुन मेरी देवी पर्वतवासनी…॥

ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया ।
मनवंचित फल पाया ॥

सुन मेरी देवी पर्वतवासनी ।
कोई तेरा पार ना पाया ॥

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