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वट सावित्री व्रत(Vat Savitri Vrat 2025)

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वट सावित्री व्रत (अमावस्या) व वट सावित्री व्रत (पूर्णिमा) दोनों में ही सावित्री, सत्यवान और वट वृक्ष की पूजा की जाती है। दोनों ही व्रत हिंदू विवाहित महिलाएं  अपने सास-ससुर एवं पति की लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। यह व्रत उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा आदि जगहों पर ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को मनाया जाता हैं  जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में यह व्रत पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता हैं। अमावस्या तिथि को मनाये जाने वाले व्रत को वट अमावस्या व्रत और पूर्णिमा तिथि को मनाये जाने वाले व्रत को वट पूर्णिमा व्रत कहते हैं।

वट सावित्री व्रत (अमावस्या) व वट सावित्री व्रत (पूर्णिमा) 2025 कब है :

वट सावित्री व्रत (अमावस्या) -26 जून 2025

वट सावित्री व्रत (पूर्णिमा) – 10 जून 2025 को सुबह 11:35 पर पूर्णिमा तिथि शुरू होगी वहीं इसका समापन अगले दिन 11 जून दोपहर 1:13 पर होगा। अतः वट सावित्री पूर्णिमा व्रत 10 जून को रखा जाएगा तथा स्नान दान 11 जून को किया जाएगा।

वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री 

सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, कच्चा सूत( लाल रंग का कलावा), धूप,  मिट्टी का दीपक, फल, फूल, बतासा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, बरगद का फल, मौसमी फल जैसे आम ,लीची और अन्य फल,घर में बनी पुड़िया, भीगा हुआ चना, मिठाई, घर में बना हुआ व्यंजन, जल से भरा हुआ कलश आदि।

वट सावित्री व वट पूर्णिमा व्रत पूजा विधि (Vat savitri or Vat purnima puja vidhi)

  • इस पूजा को करने वाली महिलाएं प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें और श्रृंगार करके तैयार हो जाएं।
  • सभी स्त्रियाँ इस दिन उपवास रखती है, व पूजा के बाद भोजन ग्रहण कर लेती है।
  • यह पूजा वट के वृक्ष के नीचे होती है. अतः वृक्ष के नीचे एक स्थान को अच्छे से साफ़ करके वहाँ पर सभी पूजा सामग्री रख लें।
  • इसके बाद सत्यवान और सावित्री की मूर्तियाँ वट वृक्ष के जड़ में स्थापित करें तथा इन मूर्तियों को लाल वस्त्र अर्पित कराये।
  • अब बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और फिर रोली, अक्षत, भीगे चने, कलावा, फूल, फल, सुपारी, पान, मिष्ठान आदि अर्पित करें।
  • फिर  दीपक और धूप जला लें। अब वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम करके परिक्रमा पूर्ण करें।
  • इसके बाद हाथों में भिगोए हुए चना लेकर व्रत की कथा सुने और फिर इन चने को अर्पित कर दें।कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले और उसपर कुछ रूपए रखकर अपनी सास को दें।
  • फिर सुहागिन महिलाएं सावित्री माता को चढ़ाए गए सिंदूर को तीन बार लेकर अपनी मांग में लगा लें।
  • ये करने के बाद ब्राह्मण व जरुरत मंद को दान करें तथा  चना व गुड़ का प्रसाद सबको दे।
  •  अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें। इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोल सकती हैं। इसके लिए बरगद के वृक्ष की एक कोपल और 7 चना लेकर पानी के साथ निगल लें।
  • अब  घर में सभी बड़ों के पैर छूकर स्त्रियाँ सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद लेती हैं.
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