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शनि प्रदोष व्रत कथा ( Shani Pradosh Vrat Katha )

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हिन्दू पंचांग के अनुसार शुक्ल और कृष्ण पक्ष में त्रयोदशी तिथि को जो व्रत शनिवार के दिन पड़ता है उसे शनि प्रदोष कहा जाता है। त्रयोदशी का दिन भगवान शिव को समर्पित है और शनिवार को शनिदेव की पूजा किये जाने का विधान है। बता दें कि भगवान शिव को शनिदेव का आराध्य देव माना जाता है। इस प्रकार शनि प्रदोष के दिन भगवान शिव और शनिदेव की पूजा करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है और शनि दोष का प्रभाव भी शीघ्र ही कम हो जाता है।

प्रदोष काल : प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होता है। इसी कल में शिव-पार्वती जी की पूजा की जाती है।

शनि प्रदोष व्रत तिथि 

अप्रैल में 

कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत

06 अप्रैल 2024 ,शनिवार

प्रदोष व्रत 6 अप्रैल को सुबह 10 बजकर 19 मिनट से 7 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।

अगस्त में 

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत

17 अगस्त 2024 , शनिवार

यह सावन माह का दूसरा प्रदोष व्रत होगा। यह 17 अगस्त को सुबह 08 बजकर 5 मिनट से लेकर 18 अगस्त को सुबह 05 बजकर 51 मिनट तक रहेगा।

कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत

31 अगस्त 2024 ,शनिवार

31 अगस्त को 02 बजकर 25 मिनट से लेकर 1 सितंबर को 03 बजकर 40 मिनट तक रहेगा।

दिसंबर में 

कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत

28 दिसंबर 2024 , शनिवार

यह व्रत 28 दिसंबर को 02 बजकर 26 मिनट से लेकर 29 दिसंबर को 03 बजकर 32 मिनट तक होगा।

शनि प्रदोष व्रत कथा ( Shani Pradosh Vrat Katha )

प्राचीन समय में एक नगर में रहने वाला सेठ बड़ा ही धनवान था। उसके पास धन-दौलत और ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी। इतना अधिक धनवान होने के बाद भी वह दयालु प्रवृति का था क्योंकि उस सेठ के यहाँ से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा था। वह खूब दान-पुण्य करता था, परन्तु उस सेठ के कोई संतान नहीं थी। इस बात से सेठ और उसकी पत्नी दोनों बहुत दुःखी रहा करते थे।

जब दोनों पति-पत्नी अत्यंत दुःखी हो गए तो उन्होंने तीर्थ यात्रा पर जाने का मन बनाया। इस प्रकार वे दोनों अपना सारा काम-काज सेवकों को सौंपकर तीर्थ पर निकल पड़े।  नगर से कुछ दूर निकलते ही दोनों को विशाल वृक्ष के नीचे एक तेजस्वी साधु समाधि लगाए दिखे।  साधु को देख दोनों के मन में विचार आया कि क्यों न अपने तीर्थ की शुरुआत साधु का आशीर्वाद लेकर की जाए।

आशीर्वाद लेने के लिए दोनों साधु के सामने हाथ जोड़कर समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे।  सुबह से शाम और शाम से रात हो गई पर साधु की समाधि न टूटी।  इसके बावजूद दोनों पति-पत्नी प्रतीक्षा में वहीं बैठे रहे।  आखिरकार अगले दिन प्रातःकाल साधु समाधि से उठे तो उन्होंने दोनों को हाथ जोड़कर वहां बैठे देखा। इसके बाद साधु बोले कि ‘मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं।’ इसके बाद साधु ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत के बारे में बताया और पूजा विधि बताई।

सेठ और उसकी पत्नी जब अपनी तीर्थ यात्रा पूर्ण करने के बाद अपने घर को लौटे तो उन्होंने साधु के कहे  अनुसार शनि प्रदोष व्रत का पालन किया।  इसी का फल था कि सेठ के घर एक सुन्दर बालक ने जन्मा लिया । इस तरह जो भी जातक इस दिन नियमपूर्वक पूजा विधि का पालन कर शनि प्रदोष व्रत का पाठ करते हैं उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

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