धनत्रयोदशी पूजन विधि (Dhanteras Poojan Vidhi) और शुभ मुहूर्त – दीपावली उत्सव के प्रथम दिवस अर्थात धनत्रयोदशी विभिन्न कारणों से मनाया जाता है। भारत में इस त्यौहार को अलग-अलग क्षेत्रों में पृथक-पृथक कारणों से मनाया जाता है, मुख्य रूप से यह पर्व अपनी षष्टविध उपयोगिता को स्वीकार करता है।
- धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में
- धनतेरस के रूप में
- कुबेर पूजन के रूप में
- यमदीपदान एवं यमराज निमित व्रत दिवस के रूप में
- गोत्रिरात्र व्रत दिवस के रूप में
- यमुना स्नान दिवस के रूप में
धनतेरस तिथि व मुहूर्त (2024 )
धनतेरस तिथि – 29 अक्टूबर, मंगलवार
प्रदोष काल – शाम 05:36 बजे से रात्रि 08:11 बजे तक
वृषभ काल – शाम 06:20 बजे से रात्रि 08:15 बजे तक
धनतेरस पूजन शुभ मुहूर्त – शाम 6:30 बजे से रात 8:12 बजे तक
भगवान धन्वन्तरि का पूजन
ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृतकलश लिए धन्वन्तरि का प्रादुर्भाव कार्तिक कृष्ण त्रोदशी के दिन ही हुआ था। भगवान धन्वन्तरि को आरोग्य एवं दीर्घायु बनाने वाले देवता के रूप में माना जाता है। वे भगवान विष्णु के अंशावतार थे, जिन्होंने बाद में पुनः अवतार लिया था। इस दिन वैद्य समाज भगवान धन्वन्तरि का पूजन करता है। इनके अतिरिक्त सामान्यजन भी भगवान धन्वन्तरि का पूजन आरोग्यप्राप्ति हेतु करते है। वे व्यक्ति जो प्रायः रुग्ण रहते हैं अथवा वर्तमान में शरीर से संबंधित कोई समस्या चल रही हो, तो उन्हें भगवान धन्वन्तरि का पूजन अवश्य करना चाहिए। सर्वप्रथम प्रातः काल भगवान धन्वन्तरि का चित्र चौकी पर स्वच्छ वस्त्र विछाकर स्थापित करें। तदुपरान्त हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर निम्नलिखित श्लोक से भगवान धन्वन्तरि का ध्यान करें ;
देवान कृशानसुरसंघनिपीडिताङ्गान
दृष्ट्वा दयालुरमृतं विपरीतुकामः।
पाथोधिमंथनविधौ प्रकटोअभवद्यो
धन्वन्तरिः स भगवानवतात सदा नः।।
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ॐ
धन्वन्तरिदेवाय नमः।
ऐसा कहते हुए भगवान धन्वन्तरि के समक्ष – अक्षत पुष्प छोड़ दें। इसके बाद भगवान धन्वन्तरि का पूजन पूरे विधि-विधान से करना चाहिए और भगवान धन्वन्तरि से अपने परिजनों एवं मित्रों की आरोग्य की प्राप्ति के लिए प्राथना करें तथा साष्टांग दंडवत करे।
धनतेरस (वस्तुओं का क्रय)
धनत्रयोदशी अर्थात धनतेरस को दोपहर के बाद बर्तन, आभूषण, वाहन या अन्य वस्तुएँ खरीदकर लायें। इस दिन बर्तन खरीदकर लाने का विशेष विधान होता है। ऐसा माना जाता है कि बर्तन के साथ सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है। इस दिन किसी को भी धन उधार नहीं देना चाहिए और क्रय उन्हीं वस्तुओं का करना चाहिए जिनकी आवश्यकता हो। धन के अपव्यय से यथासम्भव बचना चाहिए।
कुबेर पूजन
ब्रह्माजी से राजराज एवं धनाध्यक्ष की उपाधि प्राप्त करने के कारण धनत्रयोदशी के दिन कुबेर जी की पूजा की जाती है। इसी दिन उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण और पूजन करना सौभाग्य वृद्धि हेतु आवश्यक है। कुबेर जी भगवान् शिव के मित्र भी है। इस कारण यदि कुबेर किसी व्यक्ति पर प्रसन्न हो जाये तो उसकी सभी भौतिक कामनाओं की पूर्ति करने के साथ ही सभी प्रकार की समस्याओं से भी अपने भक्तों को दूर रखते हैं। इस दिन कुबेर पूजन एवं उनके निमित्त मंत्र जाप, स्तोत्र पाठ आदि करने से यक्षराज प्रसन्न होकर साधक को आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करते हैं।
यमदीपदान
धनतेरस वाले दिन प्रदोषकाल में यमराज के निमित्त दीपदान करें एवं उस दिन उनके निमित्त व्रत भी करें। मुख्यद्वार के दोनों ओर मिट्टी के दीपकों को तेल से भरकर उनमें रुई की बत्ती डालकर प्रज्वलित करना चाहिए। दीपकों को अन्न की ढेरी पर रखना चाहिए। दीपक रखते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें :
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति।। (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड)