गोवर्धन पूजा
हर साल कार्तिक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। जब भगवान श्री कृष्ण ने स्वर्ग के राजा इंद्र को उनका घमंड चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत उठा कर पराजित किया, तब से गोवर्धन पूजा मनाई जाती है।गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है।अन्नकूट में चन्द्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
इस दिन पूजा का समय कहीं प्रातःकाल होता है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या के समय गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है।
इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णतः बन्द रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि – 2025 में गोवर्धन पूजा बुधवार, 22 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
प्रतिपदा तिथि आरंभ : 21 अक्टूबर 2025, शाम 5 बजकर 54 मिनट से
प्रतिपदा तिथि समाप्त : 22 अक्टूबर 2025, रात 8 बजकर 16 मिनट पर
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। गिरिराज पर्वत के बारे में माना जाता है कि इस पर्वत की खूबसूरती से पुलस्त्य ऋषि बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने द्रोणांचल पर्वत से इसे उठाकर साथ लाना चाहा तो गिरिराज जी ने कहा कि आप मुझे जहाँ भी पहली बार रखेंगे मैं वहीं स्थापित हो जाउंगा। रास्ते में साधना के लिए ऋषि ने पर्वत को नीचे रख दिया फिर वे दोबारा उसे हिला नहीं सके। इससे क्रोध में आकर उन्होंने पर्वत को शाप दे दिया कि वह रोज घटता जाएगा। माना जाता है उसी समय से गोवर्धन पर्वत का कद लगातार घट रहा है।
गोवर्धन पूजा की विधि और नियम
गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है ध्यान रहे कि गोवर्धन भगवान की आकृति शयन मुद्रा में हो। इसे फूलों से सजाया जाता है।
भगवान गोवर्धन की नाभि की जगह मिट्टी का दीपक रखें।
पूजा में बने गोवर्धन पर्वत पर कुमकुम, जल, फल, फूल और नैवेद्य आदि चढ़ाएं। फिर धूप, दीपक जलाएं।
पूजा के बाद गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करें। इस दौरान जौ की बुवाई करते समय कलश से पानी भी गिराया जाता है।
इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ-साथ भगवान कृष्ण और भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करने का विधान है।