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गुरु प्रदोष व्रत कथा (Guru Pradosh Vrat Katha)

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गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष का व्रत रखने और भगवान शिव के साथ ही उनके पूरे परिवार की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की पूजा को प्रदोष काल में  विशेष फलदायी माना गया है। प्रदोष का व्रत जिस दिन पड़ता है उस दिन जिस देवी या देवता का दिन होता है,उनकी पूजा के साथ ही शिव जी की भी पूजा की जाती है।

प्रदोष काल : प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होता है। इसी कल में शिव-पार्वती जी की पूजा की जाती है।

 गुरु प्रदोष व्रत तिथि

 जनवरी में

कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत
गुरुवार, 19 जनवरी 2023
19 जनवरी 2023 दोपहर 01:18 बजे – 20 जनवरी 2023 सुबह 10:00 बजे

फरवरी में

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत, गुरु प्रदोष व्रत
गुरुवार, 02 फरवरी 2023
02 फरवरी 2023 को शाम 04:26 बजे – 03 फरवरी 2023 को शाम 06:58 बजे

जून में

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत, गुरु प्रदोष व्रत
गुरुवार, 01 जून 2023
01 जून 2023 दोपहर 01:39 बजे – 02 जून 2023 दोपहर 12:48 बजे

कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत, गुरु प्रदोष व्रत
गुरुवार, 15 जून 2023
15 जून 2023 पूर्वाह्न 08:32 बजे – 16 जून 2023 पूर्वाह्न 08:40 बजे

अक्टूबर में

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत, गुरु प्रदोष व्रत
गुरुवार, 26 अक्टूबर 2023
26 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 09:44 बजे – 27 अक्टूबर 2023 पूर्वाह्न 06:57 बजे

गुरु प्रदोष व्रत कथा

एक बार असुरों का राजा वृत्तासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। तब देवराज इंद्र ने बहादुरी से उसका मुकाबला किया। देवताओं की सेना ने वृत्तासुर के सैनिकों को परास्त कर दिया। वे मैदान छोड़कर भाग गए। अपने सैनिकों का यह हाल देखकर वृत्तासुर अत्यंत ही क्रोधित हो गया। उसने अपनी माया का प्रभाव दिखाना शुरु किया। उसने अपनी माया के प्रभाव से बहुत ही विकराल और भयानक रूप धारण कर लिया।

इससे देवताओं के सैनिक डर गए और भागकर देव गुरु बृहस्पति के शरण में पहुंचे।  देवराज इंद्र ने गुरु बृहस्पति से वृत्तासुर पर विजय प्राप्ति का उपाय पूछा। गुरु बृहस्पति ने बताया कि वृत्तासुर बहुत ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। वह शिव भक्त है। उसने गंधमादन पर्वत पर कठोर तप किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया। पूर्वजन्म में वह राजा चित्ररथ था।

एक बार वह कैलाश पर्वत पहुंचा तो वहां भगवान शिव के वाम अंग में माता पार्वती विराजमान थी जिसे देख कर चित्ररथ ने उपहास उड़ाना शुरू कर दिया। चित्ररथ बोला कि मोह माया में फंसकर हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। परन्तु ऐसा कभी देवलोक में नहीं देखा कि स्त्री आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठी हो। चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिव शंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!

वहीँ चित्ररथ की सभी बातें सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो उठी।  उन्होंने कहा कि तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरा भी अपमान किया है अतः मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि ऐसा उपहास उड़ाने का दुस्साहस फिर तू कभी नहीं करेगा। तब माता पार्वती ने उसे राक्षस योनि में जाने का श्राप दे दिया। उस श्राप के कारण वही चित्ररथ आज का वत्तासुर है। वह अपने बाल्यकाल से ही शिव भक्ति करता आ रहा है। उसे परास्त करने का एक ही उपाय है कि हे इंद्र! तुम गुरु प्रदोष व्रत को नियम पूर्वक करो और भगवान शिव को प्रसन्न करो।

देव गुरु की सलाह पर देवराज इंद्र ने विधि विधान से गुरु प्रदोष व्रत रखा और भगवान शिव की आराधना की। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से देवराज इंद्र ने वृत्तासुर को युद्ध में हरा दिया। उसके बाद से स्वर्ग लोक में शांति की स्थापना हुई। इस वजह से इस व्रत को शत्रुओं पर विजय के लिए उपयोगी माना जाता है।

 

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