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Somvar Vrat Katha | सोमवार व्रत कथा और सोमवार व्रत विधि

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भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत रख रहे हैं, तो सोमवार व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें-

सोमवार व्रत की विधि

नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को बेल-पत्र और जल चढ़ाना चाहिए तथा शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव जी की आरती करनी चाहिए। शिव-पार्वती पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। इसके बाद दिन में केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए।  साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है, अर्थात शाम तक रखा जाता है। सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है – (1) प्रति सोमवार व्रत, (2) सौम्य प्रदोष व्रत और (3) सोलह सोमवार का व्रत। इन सभी व्रतों के लिए विधि एक ही होती है।

सोमवार व्रत कथा

एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान और पार्वती जी की पूजा करता था। उसके इस भक्ति भाव से माँ पार्वती प्रस्न हो गई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोरथ पूर्ण करने का आग्रह करने लगी। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो है उसे भोगना पड़ता है। लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मन रखने के लिए कहा अर्थात उसकी मनोकामना पूरी करने को कहा।

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुःख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा।

कुछ समय व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परन्तु साहूकार ने उसकी केवल बारह वर्ष की आयु जानकर अधिक प्रसन्नता प्रकट नही की और न ही किसी को भेद बताया। जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो वह साहूकार कहने लगा कि अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा। अपने पुत्र को काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा। फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात् बालक के मामा को बुला करके उसको बहुत सा धन देकर कहा तुम इस बालक को काशी जी पढ़ने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस जगह पर भी जाओ वहाँ यज्ञ करते दान देते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ।

दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े। रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था,लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया।  उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं।  विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।  लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया।लेकिन साहूकार का पुत्र ईमानदार था, उसे यह बात सही नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है, मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।

जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई।  दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा तो वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना-पीटना मचा दुँगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना आरम्भ कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वतीजी उधर से जा रहे थे । जब उन्होने जोर- जोर से रोने की आवाज सुनी तोपार्वती जी कहने लगी – “महाराज! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए। जब शिव- पार्वती ने पास जाकर देखा तो वहां एक लड़का मुर्दा पड़ा था । पार्वती जी कहने लगीं – महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था। शिवजी कहने लगे – “हे पार्वती! इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता-पिता तड़प-तड़प कर मर जायेंगे।” पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन वरदान दिया और शिवजी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया। शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गये।

तब वह लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते अपने घर की ओर चल पड़े । रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था। वहां पर आकर उन्होने यज्ञ आरम्भ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की साथ ही बहुत से दास-दासियों सहित आदर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया । जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर आता हूँ। जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता घर की छत बैठे थे और यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी-खुशी नीचे आ जायेंगे नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण खो देंगे। इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्‍वास नहीं आया तब उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ ने आनन्द के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे। इसी प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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