You are currently viewing बुध प्रदोष व्रत कथा : Budh Pradosh Vrat Katha

बुध प्रदोष व्रत कथा : Budh Pradosh Vrat Katha

कृपया शेयर करें -

बुध प्रदोष व्रत :

बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष का व्रत रखने और भगवान शिव के साथ ही उनके पूरे परिवार की विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की पूजा को प्रदोष काल में  विशेष फलदायी माना गया है। प्रदोष का व्रत जिस दिन पड़ता है उस दिन जिस देवी या देवता का दिन होता है,उनकी पूजा के साथ ही शिव जी की भी पूजा की जाती है।

प्रदोष काल : प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होता है। इसी कल में शिव-पार्वती जी की पूजा की जाती है।

बुध प्रदोष व्रत तिथि (2025 )

पहला प्रदोष व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 6 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 08 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 7 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट पर होगा । प्रदोष व्रत के दिन पूजा का समय शाम 7 बजकर 8 मिनट से लेकर 9 बजकर 16 मिनट तक है। अतः बुद्ध प्रदोष व्रत 6 अगस्त 2025 बुधवार को है।

दूसरा प्रदोष व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को 20 अगस्त 2025 (बुधवार) को मनाया जाएगा। यह तिथि 20 अगस्त को दोपहर 01:58 बजे शुरू होकर 21 अगस्त को दोपहर 12:44 बजे समाप्त होगी। पूजा के लिए शुभ समय शाम 06:20 से रात 08:33 तक निर्धारित है।

 बुध प्रदोष व्रत कथा:

प्राचीन काल की कथा है, एक पुरुष का नया-नया विवाह हुआ था। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लेने के लिये अपनी ससुराल पहुँचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन ही पत्नी को लेकर अपने नगर जायेगा।
उस पुरुष के सास-ससुर ने, साले-सालियों ने उसको समझाया कि बुधवार को पत्नी को विदा कराकर ले जाना शुभ नहीं है, लेकिन वह पुरुष नहीं माना। विवश होकर सास-ससुर को अपने जमाता और पुत्री को भारी मन से विदा करना पड़ा ।
पति-पत्नी बैलगाड़ी में चले जा रहे थे। एक नगर से बाहर निकलते ही पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पत्नी के लिये पानी लेने गया। जब वह पानी लेकर लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी पराये पुरुष के लाये लोटे से पानी पीकर , हँस-हँसकर बात कर रही है। वह पराया पुरुष बिल्कुल इसी पुरुष के शक्ल-सूरत जैसा हीं था। यह देखकर वह पुरुष दूसरे अन्य पुरुष से क्रोध में आग-बबूला होकर लड़ाई करने लगा। धीरे-धीरे वहाँ काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी । इतने में एक सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि सच-सच बता तेरा पति इन दोनों में से कौन है ? लेकिन वह स्त्री चुप रही क्योंकि दोनों पुरुष हमशक्ल थे ।वह स्त्री दुविधा में पड़ चुकी थी।
बीच राह में पत्नी को इस तरह लुटा देखकर  अतः वह पुरुष अपनी परेशानी के हल के लिए मन ही मन शंकर भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मुझे और मेरी पत्नी को इस मुसीबत से बचा लो, मैंने बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर जो अपराध किया है उसके लिये मुझे क्षमा करो। भविष्य में मुझसे ऐसी गलती नहीं होगी। श्री शंकर भगवान उस पुरुष की प्रार्थना से द्रवित हो गये और उसी क्षण वह अन्य पुरुष कही अंतर्ध्यान हो गया। वह पुरुष अपनी पत्नी के साथ सकुशल अपने नगर को पहुँच गया। इसके बाद से दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत करने लगे। बोलो उमापति शंकर भगवान की जय ।

अगर आपको यह लेख पसंद आया, तो कृपया शेयर या कॉमेंट जरूर करें।
(कुल अवलोकन 830 , 1 आज के अवलोकन)
कृपया शेयर करें -