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इंदिरा एकादशी व्रत कथा | Indira Ekadashi

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पितृपक्ष में पड़ने के कारण इंदिरा एकादशी को पितरों की गति सुधारने वाली एकादशी भी कहते है। हमारे हिन्‍दु धर्म के अनुसार एक वर्ष में कुल 24 एकादशी।  होती हैं। यदि मनुष्‍य इस एकादशी को पूरे विधि-विधान व श्रद्धा भाव से रखता है तो उनके पितरों को सभी कष्‍टाे से मुक्‍ति मिल जाती है। अर्थात उनकी आत्‍मा को शांति प्रदान होती है।इंदिरा एकादशी पर व्रत रखने और पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण करने से पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है

इंदिरा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था। जिसका राजा इंद्रसेन था। इंद्रसेन एक बहुत ही प्रतापी राजा था। राजा अपनी प्रजा का पालन-पोषण अपनी संतान के समान करता था। राजा के राज में किसी को भी किसी चीज की कमी नहीं थी। राजा भगवान विष्णु का परम उपासक था। एक दिन अचानक नारद मुनि का राजा इंद्रसेन की सभा में आगमन हुआ। नारद मुनि राजा के पिता का संदेश लेकर पहुंचे थे। राजा के पिता ने कहा था कि पूर्व जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही हैं। यमलोक से मु्क्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत करना होगा, ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके।

पिता का संदेश सुनकर राजा इंद्रसेन ने नारद जी से इंदिरा एकादशी व्रत के बारे में बताने को कहा। तब नारद जी ने कहा कि यह एकादशी आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पड़ती है। एकादशी तिथि से पूर्व दशमी को विधि-विधान से पितरों का श्राद्ध करने के बाद एकादशी को व्रत का संकल्प करें। नारद जी ने आगे बताया कि द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद भगवान की पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। इसके बाद व्रत खोलें। नारद जी ने कहा कि इस तरह से व्रत रखने से तुम्हारे पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें श्रीहरि के चरणों में जगह मिलेगी। राजा इंद्रसेन ने नारद जी के बताए अनुसार इंदिरा एकादशी का व्रत किया। जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुंठ चले गए। इंदिरा एकादशी के पुण्य प्रभाव से राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ की प्राप्ति हुई।

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