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मकर संक्रांति पूजा विधि तथा व्रत कथा

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हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति को विशेष महत्व प्रदान किया गया है।  भगवान सूर्य का धनु राशि से मकर में प्रवेश करना संक्रांति कहलाती है। यह पर्व भगवान सूर्य को सामर्पित है।  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ जाता है और इसी समय खरमास का अंत होता है। खरमास को अशुभ काल माना जाता है, इसके समाप्त होते ही शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस दिन पुण्य, दान, जप, स्नान तथा धार्मिक अनुष्ठानों का महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। कई स्थानों पर इस दिन मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए खिचड़ी दान करने की परंपरा भी माना जाती है।

मकर संक्रांति:

इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा।  इस दिन सूर्य देव प्रातः 02 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।मकर संक्रांति पर शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा।

मकर संक्रांति पुण्यकाल – प्रातः 07:15 मिनट से सायं 06: 21 मिनट तक
मकर संक्रांति महा पुण्यकाल –प्रातः  07:15 मिनट से प्रातः 09: 06 मिनट तक

 

मकर संक्रांति पूजा विधि:

मकर संक्रांति के दिन पर भगवान सूर्य को जल चढ़ाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। कई जगहों पर लोग मकर संक्रांति के लिए व्रत भी रखते हैं और अपनी श्रद्धानुसार दान करते हैं. आइए जानते हैं इस दिन कैसे करें पूजा-पाठ
1. मकर संक्रांति के दिन नहाने के पानी में तेल और तिल मिलाकर,सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाना चाहिए।  इसके बाद लाल कपड़े पहनें और दाहिने हाथ में जल लेकर पूरे दिन बिना नमक खाए व्रत करने का संकल्प लें।
2. सूर्य देव को तांबे के लोटे में सुबह के समय शुद्ध जल चढ़ाएं। इस जल में लाल फूल, लाल चंदन, तिल और गुड़ मिलाएं। सूर्य को जल चढ़ाते हुए तांबे के बर्तन में जल गिराए। तांबे के बर्तन में इकट्ठा किया जल मदार के पौधे में डाल दें। जल चढ़ाते हुए ये मंत्र बोलें – ऊं घृणि सूर्यआदित्याय नम:
3. इसके बाद नीचे दिए मंत्रों से सूर्य देव की स्तुति करें और सूर्य देवता को नमस्कार करें –
ऊं सूर्याय नम:,
ऊं आदित्याय नम:,
ऊं सप्तार्चिषे नम:,
ऊं सवित्रे नम:,
ऊं मार्तण्डाय नम:,
ऊं विष्णवे नम:,
ऊं भास्कराय नम:,
ऊं भानवे नम:,
ऊं मरिचये नम:,

4.  भगवान सूर्य की पूजा करने के बाद तिल, उड़द दाल, चावल, गुड़, सब्जी कुछ धन अगर संभव हो तो वस्त्र किसी ब्राह्मण को दान करें।
5.  इस दिन भगवान को तिल और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए और ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए।
6.  इस दिन श्रीनारायण कवच, आदित्य हृदय स्तोत्र और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना बड़ा ही उत्तम माना गया है।

मकर संक्रांति व्रत कथा – 1

पुराणों के मुताबिक, सूर्य देव और शनि महाराज में वैर था क्योंकि सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था,सूर्य देव ने इस बात से नाराज हो गये और उन्होंने शनिदेव को उनकी माता छाया से अलग कर दिया था। इस बात से छाया बेहद क्रोधित हुई और उन्होंने क्रोध में आकर सूर्यदेव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था।
सूर्यदेव छाया के श्राप से कुष्ठ रोग से पीड़ित हो गए थे। क्रोधित सूर्यदेव ने शनिदेव का घर जला दिया। घर जलने से शनिदेव और उनकी माता को काफी कष्टों का सामना करना पड़ा।  सूर्यदेव को उनकी दूसरी पत्नी के पुत्र यमराज ने काफी समझाया था कि सूर्य देव माता छाया और शनि के साथ ऐसा व्यवहार न करें। उनके समझाने के बाद सूर्यदेव खुद शनिदेव के घर पहुंचे। शनिदेव कुंभ में रहते थे। शनिदेव का पूरा घर जल चुका था और उनके पास केवल काले तिल ही थे। शनिदेव ने उन काले तिलों से ही अपने पिता सूर्यदेव की पूजा की। तब सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि मकर राशि जो कि शनि का दूसरा घर है, उनके आने से धन-धान्य हो जाएगा। यही वजह है कि शनिदेव को तिल बेहद प्रिय हैं।

मकर संक्रान्ति व्रत कथा – 2

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान राजा सगर ने किया और अपने अश्व को विश्व-विजय के लिये छोड़ दिया। उस अश्व को छल से इंद्र देव ने कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। जब राजासगर के साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में युद्ध के लिये पहुंचे तो कपिल मुनि ने श्राप देकर उन सबको भस्म कर दिया। राजकुमार अंशुमान, राजा सगर के पोते ने कपिल मुनि के आश्रम में जाकर विनती की और अपने बंधुओं के उद्धार का रास्ता पूछा। तब कपिल मुनि ने इनके उद्धार के लिये गंगा जी को धरती पर लाने को कहा। राजकुमार अंशुमान ने तय किया कि जब तक गंगा मां धरती पर नहीं आ जाती हैं तब तक उनके वंश का कोई भी राजा चैन से नहीं रहेगा। राजकुमार अंशुमान ने गंगा जी को धरती पर लाने के लिए कठिन तप किया और उसी में अपनी जान दे दी। भागीरथ राजा दिलीप के पुत्र और अंशुमान के पौत्र थे।

इसके बाद घोर तपस्या करके राजा भागीरथ ने  गंगा जी को प्रसन्न किया और उन्हें धरती पर आने के लिये मना लिया। इसके बाद भागीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे महादेव गंगा जी को अपने जटा में रख कर, वहां से धीरे-धीरे गंगा के जल को धरती पर प्रवाहित कर सकें। भागीरथ की  कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें इच्छित वर दिया। इसके बाद महादेव के जटा में समाहित होकर गंगा जी धरती के लिये प्रवाहित हुई। गंगा जी को रास्ता दिखाते हुए भागीरथ कपिल मुनि के आश्रम गये, जहां पर उनके पूर्वजों की राख उद्धार के लिये उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।

कहते हैं कि गंगा जी के पावन जल से भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार हुआ। उसके बाद गंगा जी सागर में मिल गयी। कहा जाता है कि जिस दिन गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम पहुंची उस दिन मकर संक्रांति का दिन था। कहते हैं कि इस कारण ही इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं।

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