बसंत पंचमी कथा (Basant Panchami Katha) – बसन्त पंचमी की पूजा से जुड़ी कथा को भी जानना चाहिए और वांछित फल प्राप्ति के लिए पढ़ना भी चाहिए। इस बसंत पंचमी की कथा को बसंत पंचमी वाले दिन अवश्य पढ़ना चाहिए।
बसंत पचंमी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने जब सृष्टि की रचना की तब सृष्टि के रचनाकार अपनी इस रचना से संतुष्ट नहीं हुए उन्हें लगता था की इसमें कुछ कमी है, जिसके कारण पूरे ब्रह्माण्ड में शन्ति थीं। भगवान विष्णु और शिव जी से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल के जल को वेदों के उच्चारण के साथ पृथ्वी पर छिड़का, पृथ्वी पर जल के छींटे गिरते ही उस स्थान पर कम्पन होने लगा। फिर उस स्थान से एक अद्धभुत शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। यह प्रादुर्भाव एक सुंदर देवी की थी। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ तथास्तु मुद्रा में था। यह देवी मां सरस्वती थीं।
त्रिदेव ने उनका अभिवादन किया और उनसे वीणा बजाने का अनुरोध किया। मां सरस्वती ने उनका अभिवादन स्वीकार करते हुए जब वीणा बजाया तो संसार की हर चीज में स्वर आ गया। समस्त लोक वीणा के स्वर से भाव विभोर हो गए। माता के वीणा के स्वर से समस्त लोक में चंचलता आ गई। इसी से उनका नाम सरस्वती देवी पड़ा। इस दिन को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता हैं। तब से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा होने लगी।