एकादशी व्रत के नियम (Ekadashi Vrat Ke Niyam) – सामान्यतया वर्ष में 24 एकादशी होती हैं। जबकि अधिक वर्ष में 26 एकादशी होती हैं। हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तथा व्रत रखा जाता है। एकादशी व्रत रखने के नियम इस प्रकार हैं –
एकादशी व्रत के नियम :
- एकादशी का व्रत-उपवास करने वालों को दशमी के दिन से मांस, लहसुन, प्याज, मदिरा, अण्डा, मंछली, मसूर की दाल, चावल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन क्रोध न करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।
- रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
- एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें।
- यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ला कर लें। इसके बाद स्नानादि कर मंदिर जाये और मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पण्डित जी से गीता पाठ सुनें।
- फिर भगवान विष्णु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि ‘आज मैं चोर, पाखंडी़ और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा/करुँगी और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा/दुखाउंगी। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा/करुँगी।’
- इसके बाद ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः‘ मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि भगवान विष्णु के सहस्रनामों को कंठ से जाप करें।
- भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करते हुए कहें कि – हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।
- यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए।
- एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।
- इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए।
- अधिक नहीं बोलना चाहिए। अधिक बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाते हैं।
- इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है।
- वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
- एकादशी (ग्यारवीं तिथि) के दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।
- प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देनी चाहिए।
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